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वो ज़िंदा था

सुबह हो गयी है। सूरज की पहली किरण की गरमाहट से ओस पिघल रही है। चिड़ियों की आवाज़ गूंज रही है। सब कुछ इतना निशब्द है की घास की सरसराने की आवाज़ भी आ रही है। जो आग जली हुयी थी, अब वो बुझ चुकी है। जली हुयी लकड़ी, जले हुए कपडे और अधजले मांस की गंध पुरे मैदान में घूम रही है। एक के ऊपर एक लाशें गिरी हुयी है। कुछ दो तीन लोग लाशों की तलाशी ले रहे है। शायद कुछ मिल जाए। एक पुरानी मटकी में जो भी कीमती मिल रहा है उसको रखते जा रहे हैं। सुबह सुबह काम शुरू हुआ है सफाई का। गीधों के आने से पहले लाशों की गिनती करनी है। कोई जंगली जानवर आजाये तो उसका खतरा अलग।

किंढ़ार की हार हुयी है। सेना नायक को बंदी बना लिया गया है। राजा और उसके पुरे परिवार को मार दिया गया है। रात को ही नगर के दरवाजे बंद कर दिए गए। अंदर जो भी हो रहा है उसकी खबर तभी मिलेगी जब मगध की सेना का मन भर जाएगा और वो दरवाजा खोलेंगे।

तो हमे बस लाशों को जलाना है ? और कोई काम नहीं मिलेगा क्या ? लड़ें तो हम भी थे! हमे भी नगर के अंदर आराम करने का मौका मिलना चाहिए ना काका ? ऐसे कई सवाल निराही के मन मैं थे लेकिन उसने सुबह से कुछ नहीं कहा था। लेकिन अब इन मोटे मोटे लोगों की लाशों को धक्का देते देते वो थक चूका है। ऋतू काका उसकी बड़बड़ाहट को सुन रहे है लेकिन वो अपना काम करते जा रहे है। मानो एक गधा हो। कोई सवाल उनके जुबान पर नहीं , ना ही उनके आँखों में कोई सवाल है। एक दम खाली चेहरा। कोई भाव नहीं। बस एक गढ़े में लाशें गिराते जा रहे हैं।

ऋतू काका के बूढ़ी आँखों ने बहुत युद्ध देखे है। अब तो वो लाश देख कर बता सकते है की मरने वाला लड़ कर मारा गया या, या किसी अपने ने ही गलती से मार दिया , या फिर भागते हुए ड़रपोक की तरह मारा गया, या फिर छिपे हुए चूहे की तरह जला दिया गया हो। उन केलिए तो लाश बस लाश ही है।

एक माह से ऊपर हो गया है, युद्ध चल रहा है। हर रात ऋतू काका का यही काम है। सफाई। रात के अँधेरे में कभी उन्हें किसीने नाम से नहीं बुलाया था। वो आम तौर पर अकेले ही काम करते थे। युद्ध नहीं रहता तो वो सेना के साथ शिकार का काम करते। दूर जंगलों में भटक कर, जानवरों की जाने आने की खबर देते। जब शिकार हो जाए तो उसे साफ़ करके खानसामे तक पहुंचाते। बदले में उन्हें एक जगह मिली थी जहाँ वो सो सकें। खाना खाते हुए आज तक उन्हें किसी ने देखा नहीं था। बस अपने काम से काम रखते।

काका कुछ बोलोगे की में लाशों से बात करना शुरू करूँ ? निराही ने पूछा

सेना में कब से हो? ठहरी हुयी आवाज़ में काका ने पूछा

पहली लड़ाई है मेरी और हम जीते भी तो है। मैंने अकेले ही एक सो तीस शत्रुओं को मारा है और हर रात पेहरा भी दिया है। कल जीत के बाद जब सब नगर में जा रहे थे तो मुझे और मेरे दो भाइयों को बाहर रह कर सफाई का काम करने का आदेश मिला। मुझे लगा लोग काम करेंगे, हम बस निगरानी रखने केलिए आये हैं। लेकिन यहाँ तो बस आप अकेले ही है। किसी और को आपके साथ काम करने का आदेश नहीं मिला ?

काका ने बिना किसी दुविधा के बोला , आदेश तो सैनिकों को मिलता है। जैसे तुम्हे मिला है। मेरे जैसे लोग, बस काम करते हैं। आदेश का इंतज़ार नहीं करते। में हर रात यही काम करता हूँ। तुम्हे क्या लगा, जब तुम सुबह अपनी तलवारें लेकर शत्रु का लहू ढूंढते हुए इस मैदान में आते हो, कल की लाशें कहाँ जाती है? कौन ले जाता है उन्हें? जो पशु मर जाते हैं वो कहाँ जाते हैं। रातों रात सब कुछ साफ़ कैसे हो जाता है ?

आप अकेले पूरा मैदान कैसे साफ़ करते हो ? सेकड़ो लाशें होती है , मलवा होता है और अधमरे लोगों की चीखें भी होती होगीं ?

अब कोई आवाज़ मुझे परेशान नहीं करती। चीखें तो अब बस चिड़ियों की आवाज़ जैसी है, जो सुनाई तो देती है पर में ध्यान नहीं देता। चलो गप्पे मत लड़ाओ। बहुत काम बाकी है। ये कह कर काका ने एक सोने का सिक्का मटके में डाला और एक सैनिक की लाश को घसीट ते हुए गढ़े की तरफ ले गए।

निराही भी अपने काम में लग गया। मटका भरता गया। अंगूठी, माला, सिक्के, सोने से बने कटार, छुरी, वो सब जिनकी मुर्दो को कोई जरुरत नहीं, वो मटके में जाते ही अपनी पहचान खो रहे थे। एक खनक से उनकी पहचान अब बस मुर्दों का खजाना बन गया था।

सूरज डूबने ने को हो रहा था। निराही पूरी तरह थक के चूर हो चूका था। दूर उसके दोनो भाई के कंधे भी झुके हुए थे। लेकिन काका अभी भी मटका भरने में लगे हुए थे। एक आखिरी लाश बच गयी थी जिसको काका ने गढ़े के पास एक पत्थर पर टिका के रखा हुआ था।

काका, अगर हो गया हो तो ये आखिरी लाश डाल के आग लगा दें ?

वो लाश नहीं है, सबसे कीमती खज़ाना तो वो है। और ज़िंदा है वो।

निराही ने जाकर उस लाश को थोड़ा हिलाकर देखा। कोई हरकत नहीं हुयी। सीने में कान लगा कर सुना, कोई आवाज़ नहीं। अरे काका, ये ज़िंदा नहीं है मर गया है। फेंक देता हूँ गढ़े में।

काका भागते हुए आये और कहा, दूर हट। जिसके बारे में पता न हो वो काम नहीं करना चाहिए। तुम सैनिक हो, जान लेना तुम्हारा काम है, लेकिन एक वैद्य ही बता सकता है की ये ज़िंदा है या नहीं।

ये कहकर, काका ने निराही को तेल लाने को भेज दिया। नगर के किनारे पे बने एक सैन्य छौनी में तेल था। निराही उस तरफ चलने लगा। काफी चलने के बाद उसने पीछे मूड के देखा तो उसे काका वही मटके के पास दिखे और उन्होंने हाथ हिलाते हुए उसे आगे जाने केलिए कहा। अँधेरा धीरे धीरे उजाले को खा रही थी। निराही छौनी तक पहुँच गया। वहां कोई नहीं था। एक मटके में तेल था और एक मटके में पानी। उसने तुरंत पानी का मटका उठाया और पीने लगा। दूरसे उसके भाइयों की आवाज़ सुनाई दी। वो भी उधर ही आ रहे थे। निराही ने पानी का मटका निचे रखा। और बैठ गया। उसके दोनों भाई आये और उन्होंने भी पानी पिया और बैठ गए।

निराही भाई, तेल लेकर कौन जाए इतनी दूर। अब अँधेरा भी हो गया है। मुर्दों की आत्मा अब उन्हें ढूंढेगी जिनकी तलवार से उनका आखरी सामना हुआ था। उस बूढ़े को ये काम करने दो, हम नगर में चलते हैं। सफाई का काम था। जलाने का नहीं।

अरे बहुत अच्छे इंसान लगते है, अकेले कैसे करेंगे ये काम। चलो सब मिलकर तेल का मटका लेकर जाते हैं।

अचानक से नगर का दरवाज़ा खुला और एक बैलगाड़ी बाहर निकली। उस पर कुछ मटके रखे हुए थे और कम्बल ओढ़े हुए एक आदमीं बैल हाँक रहा था। निराही ने सोचा, की उसी बैल गाडी में तेल की मटकी रख के मैदान में ले जाया जाए।

उसने आवाज़ दी, अरे ओ भाई, बैल गाडी कहाँ जा रही है? कोई जवाब नहीं आया। उसने फिर से आवाज़ दी। फिर कोई जवाब नहीं। निराही अब गुस्से में मटका उठाकर, बैलगाड़ी की ओर चल दिया। वो जितना जल्दी चलने की कोशिश करता, बैलगाड़ी उतने ही आगे निकल जा रही थी। वो आवाज़ भी दे रहा था पर बैलगाड़ी अब और जोर से आगे बढ़ते जा रही थी।

उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसके भाई कहीं नहीं दिख रहे थे। नगर का दरवाज़ा भी बंद हो गया था। शायद वो लोग नगर के अंदर चले गए हो। निराही आगे देखता है तो उसे बैलगाड़ी भी नज़र नहीं आयी। अँधेरे में कुछ खास नहीं दिख रहा था। उसने आवाज़ दी, "काका आप कहाँ हो ? में निराही! आवाज़ दो, कुछ दिखाई नहीं दे रहा। "

तभी दूर से कुछ गिरने की आवाज़ आयी। जैसे किसीने कोई पानी का मटका गिरा के तोड़ दिया हो। निराही उस दिशा में भागने लगा। एक और मटका टूटने की आवाज़ आयी। अब निराही ने अपना तेल का मटका निचे रखा और आवाज़ देते हुए भागने लगा। काका.... काका.... काका....

और एक मटके की गिरने की आवाज़ आयी और आग लग गयी। आग इतनी तेज़ और ऊँची जल रही थी, के सब कुछ जल के भस्म हो जाए। निराही ने देखा की, बैल गाडी के पीछे दो लोग बैठे है और गाडी चल पड़ी। दूर से बताना कठिन था की काका वहां थे या नहीं। वो भागते हुए बैल गाडी को देख रहा था, जो कुछ ही देर में अँधेरे में खो गया। गढ़े में आग धधक रही थी ऊपर और निचे की लकड़ियां भी जल रही थी और लाशें भी। ना काका वहां थे, ना वो लाश जो काका को ज़िंदा लग रहा था, और न ही वो ख़ज़ाने का मटका।

निराही कुछ समझ नहीं पा रहा था वही पत्थर पे वो बैठ गया। नगर की अंदर से भी आग की लपटें दिखाई दे रही थी, जैसे बहुत बड़ा जशन मनाया जा रहा हो। उसी आग की गरमाहट में निहारी सो गया।

निराही के मुंह पे पानी गिरा तो वो उठ गया। ऐसा लगा किसीने मटका भर पानी उसके मुंह पर डाल दिया हो। पर वो देखता है की उसके ऊपर सैनिक पिसाब कर रहे हैं। वो उठने की कोशिश करता है लेकिन उसके हाथ पैर बंधे हुए हैं। वो वही पड़ा हुआ है जहाँ उसने कल दिन भर लाशें गिरायी थी। वो थोड़ी सी भी हरकत करेगा तो वो उसी गढ़े में गिरेगा जिसमे नज़ाने कितनी लाशें कल रात जल कर भस्म हो गयी थी।

सैनिक थोड़े पीछे जाते हैं और सेना नायक मोसर्या अब उसके सामने एक घोड़े पे सवार हो कर खड़े हैं।

सैनिक तुम्हारा नाम क्या है ?
निराही सरकार।

क्या तुम रात भर यहाँ सो रहे थे ?
जी सरकार। मुझे नगर के अंदर नहीं आने दिया गया। यहाँ सफाई करने केलिए मुझे और मेरे दो भाइयों को छोड़ दिया गया था।

सफाई तो अच्छी की है तुमने। तुम्हारे भाई कहाँ है ?
वो तो नगर में चले गए थे रात को।

तब तो वो भी जल कर भस्म हो गए होंगे। नगर में कल रात हमला हुआ था। तुमने आग नहीं देखि ?
सरकार मुझे लगा जशन मनाया जा रहा होगा।


वहां तुम्हारे भाई और हमारे सैनिक जल रहे थे, और तुम्हे लगा हम जशन मना रहे हैं। कल रात यहाँ क्या हुआ ? तुमने बाहर से किसीको आते हुए देखा या नगर से किसीको जाते हुए ?
सरकार एक बैलगाड़ी आयी थी शाम को। उसमे शायद तेल के मटके थे। उसने यहाँ पर सारी लाशों पे तेल डाला और आग लगा के चल दिए।


कितने लोग थे ?
एक आदमीं चला रहा था। एक बूढा आदमी यहाँ दिन भर मेरे साथ सफाई कर रहा था। और एक लाश थी , जिसे वो बूढा आदमी ज़िंदा बता रहा था।

कहाँ है वो सब ?
वो तो आग लगा कर चले गए। मैंने आवाज़ दी पर वो काका रुके नहीं। में थका हुआ यहीं पर सो गया।

और वो लाश ? वो कहां है ?
वो तो मर गया था सरकार। उसकी सांसें नहीं चल रही थी। मैंने खुद देखा था।

जरुरी नहीं की जो दिखे वो सच हो।
इसका मतलब वो ज़िंदा था, काका सच बोल रहे थे।

क्या वो बूढ़ा इंसान मगध वासी था?
बोल चाल से तो मगधवासी ही लगा। लेकिन कल रात जिस तरह उसने वो मटका सोने से भरा और रात के अंधेरे में गायब होगया!

सेना नायक मोसर्या अब पीछे हटे और चलने लगे। उनके आँखों में गुस्सा था। बहुत सारा गुस्सा। सैनिक भी उनके पीछे चल दिए। निहारी को एक पिंजरे में बंद कर दिया गया।

अगले भाग में आगे की कहानी ...

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